Dev Kumar
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नेकीयाँ कर ए बन्दे कि रमजान चल रहें हैं !
होंगे पूरे वो ख्वाब जो तेरी आँखों में पल रहें हैं !
छोड़ दे अब ये गुनाहों के रास्ते !
अपने नहीं तो फिर खुदा के वास्ते !
एक बार गुनाहों से तौबा करके देख !
इबादत के पल अपनी ज़िंदगी में भरके देख !
सवर जाएगी ज़िंदगी जो खुदा ने चाहा !
या फिर असर तेरी दुआ में आया !
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