Dev Kumar
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तेरी वफ़ा छोड़ मैं बेवफाओं पे मरता रहा !
एक ही गुनाह मैं बार-बार करता रहा !
न चूमा तेरा आँचल ,न छूए तेरे पाँव !
फिर कैसे मिल जाती मुझे चाहत की छाँव !
तप-तप के सीखा हैं मैंने जिंदगी से !
चैन-ओ-सुकूँ मिलता है तेरी बंदगी से !
करूँ दीदार तेरा खुदा जैसी तेरी सूरत है !
इस जहाँ में बस, तू वफ़ा की मूरत हैं !
खुश’नसीब हैं वो जो तेरा प्यार पाते हैं !
जो दुखाते हैं तेरा दिल वो बड़ा पछताते हैं !
तेरा गुनेगार हूँ माँ !
माफ़ कर देना मुझे माँ!
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